पर्यावरण

हम मानव जिन तत्वों से चारो ओर से घिरे हुए हैं, उन्हीं तत्वों के मिले हुए स्वरूप को पर्यावरण कहा जाता है और इन तत्वों में से कुछ तत्वों के मात्रा में असंतुलन को ही प्रदूषण कहा जाता है।

सेवा

हमरी आवश्यकताओं की पूर्ति उसी समाज से होती है, जिस समाज में हम निवास करते हैं। इसलिए पुनः उसी समाज में हम अपनी आर्थिक, मानसिक और शारीरिक योगदान को सेवा के रूप में लौटाते हैं।

समाज

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज व्यक्ति से व्यक्ति के एकीकरण से बनता है। इसका निर्माण हम मानवों द्वारा संगठित होकर अपने समस्याओं और कठिनाइयों से निराकरण के लिए किया गया है।

स्मृति शेष

रामदास बाबूजी

"मैं मृत्यु सिखाता हूं" नामक पुस्तक में ओशो कहते हैं कि जीवन को कलात्मक ढंग से जीना तो विश्व के मानवों की नैसर्गिक प्रक्रिया है, लेकिन जो कलात्मक ढंग से मृत्यु की भी तैयारी करता है। वह जन्म और मृत्यु की प्रक्रिया से ऊपर हो जाता है, अर्थात् उसका आत्म साक्षात्कार हो जाता है या उसे कुछ इस तरह से भी कह सकते हैं कि वे ईश्वरत्व को प्राप्त कर लेते हैं। वैसे यह पंक्ति रामदास जी की एक लोकोक्ति के संदर्भ में याद आ गई। वे जब भी किसी सभा को संबोधित करते थे तब अपनी इस प्रिय लोकोक्ति को बोलते थे कि जिसकी गारंटी नहीं है वह है जिन्दगी और जिसकी गारंटी है उसका है नाम है मृत्यु। इसलिए जब तक जियो तब तक सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय जियो नहीं तो जिसकी गारंटी है, वह तो आएगी ही। इसमें स्व. रामदास अग्रवाल का संक्षिप्त जीवन परिचय है। जो कि यह बताता है कि व्यक्ति धन के कारण समाज में याद नहीं रखा जा सकता, वरन वह समाज के लिए कुछ कार्य करके जाता है, तो उसे ही समाज अपने स्मृति में याद रखता है।

पृष्ठिभूमि

भारत विश्व का सबसे पुरातन संस्कृति वाला देश है और भारतीय सभ्यता विश्व की सबसे पुरातन सभ्यता के साथ-साथ विश्व की समृद्ध सभ्यता भी है। इस विषय पर चिंतकों का तर्क है कि जिस समाज का चिंतन जितना समृद्ध होता है, उतनी ही समृद्ध उसकी सभ्यता भी होती है।

उद्देश्य

यह रायगढ़ जिले की एक मात्र संस्था है, जो दस सूत्री कार्यक्रमों का संचालन करती है। वर्ष 2014 में सुनील रामदास द्वारा स्थापित की गयी इस संस्था द्वारा प्रति वर्ष 50 हजार पौधे लगाने का कार्य दस सूत्री कार्यक्रमों में प्रमुखता से किया जाता है। इसके अतिरिक्त उक्त संस्था द्वारा शिक्षा, चिकित्सा, कौशल विकास, वस्तु पुनर्प्रयोग, खेल विकास, महिला शसक्तिकरण, जल संरक्षण आदि पर भी कार्य निरंतरता से किया जा रहा है।

गतिविधियाँ

हम मानव जिन तत्वों से चारो ओर से घिरे हुए हैं, उन्हीं तत्वों के मिले हुए स्वरूप को पर्यावरण कहा जाता है और इन तत्वों में से कुछ तत्वों के मात्रा में असंतुलन को ही प्रदूषण कहा जाता है। इसी प्रदूषण को आज से लगभग 9 वर्षों पूर्व सुनील रामदास ने अपनी दूरदर्शिता से भांप लिया था और उसे कारण मानकर उन्होंने अपने माता-पिता के नाम से रामदास द्रौपदी फाउंडेशन की स्थापना की।